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    Home – Balance Sheet in Hindi – बैलेंस शीट फॉर्मूला, महत्व और कैसे पढ़ें
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    Balance Sheet in Hindi – बैलेंस शीट फॉर्मूला, महत्व और कैसे पढ़ें

    Tomy JacksonBy Tomy Jackson9 February 2024Updated:9 February 2024No Comments11 Mins Read
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    Balance sheet in Hindi
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    Balance Sheet का नाम आपने बार बार कई स्थानों पर सुना होगा । अगर आप अकाउंट्स की पढ़ाई करते हैं तो इस शब्द से लगभग रोज ही आपका सामना होता होगा । साथ ही Tally सीखने वालों के लिए भी यह शब्द एकदम नया होगा । आप सभी के लिए हमने यह आर्टिकल तैयार किया है जिसमें हम आपको बेहद ही सरल भाषा में बैलेंस शीट समझाने का प्रयास करेंगे ।

    हमारी कोशिश रहेगी कि एकदम सरल से सरल रोजमर्रा की भाषा में आप बैलेंस शीट के बारे में जान सकें । आगे बढ़ने से पहले यह समझ लें कि व्यवसायों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण होता है । चाहे व्यवसाय छोटा हो या बड़ा, यह उस व्यवसाय के पूरे वित्तीय स्थिति को उजागर कर देता है जिससे कई निर्णय लेने में आसानी हो जाती है ।

    आखिर ऐसा होता कैसे है ? Balance Sheet के तत्व क्या हैं और उनका क्या महत्व है ? यह किसी व्यवसाय के लिए क्यों जरूरी होता है और कैसे तैयार किया जाता है ? आप खुद इसे कैसे तैयार कर सकते हैं ? इसके कितने प्रकार होते हैं ? ऐसे ही अन्य कई प्रश्नों के उत्तर हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से देंगे । तो चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं ।

    Balance Sheet क्या है ?

    Balance Sheet जिसका हिंदी अर्थ वित्तीय विवरण भी होता है, किसी कंपनी के वित्तीय स्तिथि को उजागर करने का एक ब्यौरा होता है । इसकी मदद से किसी संस्था के आय, व्यय, संपत्ति और देनदारियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है । यह वित्तीय वर्ष के अंत में तैयार किया जाता है ताकि संस्था के संपत्तियों और देनदारियों का सही सही पता लगाया जा सके ।

    अक्सर एक प्रश्न बार बार पूछा जाता है कि आखिर उसे बैलेंस शीट क्यों कहा जाता है ? तो इसका उत्तर है कि इसका कार्य ही यह दिखाना है कि संपत्ति हर बार देनदारियों और शेयरधारकों की इक्विटी के बराबर होगी । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे एक ही चीज़ के दो अलग-अलग विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

    आगे बढ़ने से पहले एक बात पर गौर करें कि Person और Business दोनों अलग अलग एंटिटी हैं । यानि बिजनेस भले ही आपका हो, लेकिन बिजनेस के किया आप एक Lender के ही समान हैं । अब मान लेते हैं कि क्रेडिट पर Machine खरीदी गई, यानि अगर मशीन 5,00,000 रुपए की है तो उतना ही कैश भी दिया जायेगा ।

    लेकिन कैश तो आपके पास है नहीं यानि यह एक Liability है जो आपको देनी है लेकिन जो मशीन आपके पास आया, वह आपका Asset हो गया । यानि जितना आपके Assets साइड वैल्यू बढ़ी, उतना ही Liabilities भी बढ़ा । इसलिए कहा जाता है कि बैलेंस शीट हमेशा टैली हो जाते हैं ।

    Components of Balance Sheet

    अगर आप Balance Sheet को अच्छे से समझना चाहते हैं तो सबसे पहले इसके Components को समझना बहुत जरूरी है । हम आपको बड़े ही सरल भाषा में उदाहरण के साथ इसके सभी घटकों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं । नीचे दिए घटकों के नाम आपने अक्सर अकाउंटिंग की किताबों, फिल्मों और डिस्कशन में सुना होगा । सबसे पहले यह तस्वीर देख लीजिए, जिसके सभी घटकों को नीचे समझाया गया है ।

    1. Assets (संपत्ति)

    Assets जिसका हिंदी अर्थ संपत्ति होता है, कंपनी के सुचारू रूप से चलने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है । ये वैसे संसाधन होते हैं जिन्हें कोई बिजनेस नियंत्रित करता है और उसका मालिक होता है । उदाहरण के तौर पर मशीन, बिल्डिंग, जमीन, स्टॉक आदि । लेकिन Accounting के फील्ड में एसेट्स को 4 भागों में बांटा गया है ।

    1. Current Assets (चल/चालू संपत्ति): अगर कोई संपत्ति एक वर्ष के अंदर अंदर आसानी से नकद या नकद समकक्ष में परिवर्तित किया जा सकता है तो उसे हम चालू संपत्ति कहेंगे । उदाहरण के तौर पर Stock, inventory, Marketable Securities आदि ।

    2. Fixed Assets (अचल संपत्ति): जिन संपत्तियों को लंबी अवधि के इस्तेमाल के लिए खरीदा गया है और उन्हें आसानी से नकद में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, उसे हम अचल संपत्ति कहते हैं । उदाहरण के तौर पर Land, Building, Machinery आदि ।

    3. Tangible Assets (मूर्त संपत्ति): जिन संपत्तियों को स्पर्श किया जा सकता है और जिस महसूस किया जा सकता है उसे हम मूर्त संपत्ति या Tangible Assets कहते हैं । उदाहरण के तौर पर Building ।

    4. Intangible Assets (अमूर्त संपत्ति): जिन संपत्तियों को आप स्पर्श नहीं कर सकते और न ही उन्हें महसूस किया जा सकता है, उन्हें हम Intangible Assets या अमूर्त संपत्ति कहते हैं । उदाहरण के तौर पर Marketable Securities ।

    2. Liabilities (देनदारियों)

    Liabilities जिसका हिंदी अर्थ देनदारियाँ होता है, कंपनी पर एक बोझ के समान होता है । देयताएं कम्पनी पर दूसरे व्यक्ति या व्यवसाय का बकाया होता है जिसे एक समय बाद चुकाना होता है । जब एक कंपनी किसी अन्य कंपनी से लेनदेन करती है तो इस परिस्थिति में अक्सर ऋण और अन्य वित्तीय दायित्व का भार पड़ता है । इन्हें भी 2 भागों में बांटा गया है ।

    1. Current Liabilities (चालू देयताएं): ये वे देनदारियों या देयताएं होती हैं जिन्हें कंपनी को एक वर्ष की अवधि में दूसरी कम्पनी या व्यक्ति को देनी होती हैं । चालू देयताएं एक वर्ष के भीतर ही जमा करनी होती हैं । इसके उदाहरण में Accounts Payable, Accrued Payroll, Short-Term and Current Long-Term Debt, Consumer Deposits आदि शामिल हैं ।

    2. Non-current liabilities (गैर चालू देयताएं): ये ऐसे ऋण या दायित्व हैं जिनकी देय तिथि एक वर्ष से अधिक है । इन्हें दीर्घकालिक देनदारियां भी कहा जाता है और इसके उदाहरण हैं deferred tax liabilities, bonds payable आदि ।

    3. Shareholder Equity (शेयरधारक इक्विटी)

    शेयरधारकों की इक्विटी वह राशि है जो किसी कंपनी के मालिकों ने अपने व्यवसाय में निवेश की है । दूसरों शब्दों में कहें तो शेयरधारकों की इक्विटी ऋण और अन्य देनदारियों के भुगतान के बाद शेयरधारकों के लिए उपलब्ध संपत्ति की शेष राशि है ।

    इसके कुछ उदाहरण हैं Common stock, Retained earnings, Dividends आदि । इसे कैलकुलेट करने का सबसे सरल तरीका है कि आप कुल Assets में से कुल Liabilities को घटा दें । इस तरह शेयरधारक की इक्विटी निकल कर आ जायेगी ।

    Balance Sheet Formula क्या है ?

    Balance Sheet को कैलकुलेट करने का सबसे आसान तरीका है कि आप कंपनी के Assets को Liabilities और Shareholder Equity के साथ बैलेंस कर दें । यानि इसका फॉर्मूला कुछ इस तरह से बनेगा: Total Assets = Total Liabilities + Total Equity.

    अगर इसे हम आपके लिए ज्यादा आसान कर दें तो सबसे पहले सभी अल्पकालिक, दीर्घकालिक और अन्य संपत्ति को जोड़कर कुल संपत्ति निकाल लीजिए । इसके पश्चात आपको सभी अल्पकालिक, दीर्घकालिक और अन्य देनदारियां जोड़कर कुल देनदारियां निकाल लेनी हैं । अंत में शुद्ध आय, प्रतिधारित आय, मालिक का योगदान और जारी किए गए स्टॉक का हिस्सा सबको जोड़कर Total Equity निकाल लीजिए ।

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    तो इस तरह आप Balance Sheet Formula समझ गए होंगे । अब चलिए इसे आपके लिए ज्यादा सरल बनाते हैं । मान लीजिए कि एक कम्पनी की Liability है 1,50,000 रुपए और Owner Equity है 2,00,000 रुपए । अब अगर आपसे कहा जाए की Total Assets निकालिए तो आपको बस Liabilities और Owner Equity को जोड़कर तुरंत 3,50,000 बता देनी है ।

    Balance Sheet कैसे बनाएं ?

    हमने ऊपर ही आपको Balance Sheet Components की पूरी जानकारी दे दी है । अब चलिए हम आपको उन घटकों का इस्तेमाल करके बैलेंस शीट बनाना सिखाते हैं, जोकि काफी आसान है ।

    सबसे पहले आपको Reporting Date और Time निश्चित कर लेना है । इसी आधार पर आपकी पूरी बैलेंस शीट बनकर तैयार होगी । अक्सर कंपनियां 31st December से बैलेंस शीट तैयार करती हैं तो आप इस तिथि को लेकर भी आगे बढ़ सकते हैं । इसके पश्चात आपको Assets की पहचान करना है, जिसके बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दे दी गई है । इन्हें जोड़कर अलग कर लें ।

    फिर अपने Liabilities की भी पहचान करें जिसमें Accounts payable, Accrued expenses, Deferred revenue, Current portion of long-term debt, Other current liabilities आदि आते हैं । इनकी पहचान करके इन्हें भी आपको कैलकुलेट कर लेना है । अब तीसरा कदम है Shareholder Equity को कैलकुलेट करने का । इसके अंतर्गत Common stock, Preferred stock, Treasury stock, Retained earnings आते हैं ।

    अंत में आपको Liabilities के साथ Equity को जोड़ देना है और फिर यह देखना है कि Total Assets के बराबर आ रहा है या नहीं । याद रखें कि एक सही Balance Sheet हमेशा टैली होता है इसलिए दोनों हिस्से हमेशा बराबर होने चाहिए । अगर दोनों बराबर हैं तो बधाई हो, आपने एक सही बैलेंस शीट तैयार कर लिया है ।

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    Importance of Balance Sheet

    Balance Sheet का मुख्य काम ही होता है एक कंपनी और उसके संचालन के बारे में Insights देना । कंपनी की वित्तीय स्तिथि के बारे में बताने के लिए बैलेंस शीट से बेहतर कुछ भी नहीं है । यह कंपनी की Assets, Liabilities, Owner Equity की पूरी जानकारी देता है । इसकी मदद से कम्पनी से जुड़े महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लेने में मदद मिलती है ।

    किसी बिजनेस के सुचारू रूप से चलाने के लिए बैलेंस शीट बेहद महत्वपूर्ण होता है । इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसकी मदद से किसी भी कम्पनी के कुल मूल्य (net worth) का भी पता चलता है । इसकी मदद से बिजनेस अपने बिजनेस का कुल मूल्य निकालकर बैंकों से लोन लेते हैं । बैंक बिजनेस के कुल मूल्य को देखकर ही लोन प्रदान करते हैं ।

    अगर कंपनी की वित्तीय स्तिथि अच्छी है तो निवेशक भी कम्पनी में अच्छा निवेश करते हैं । किसी भी कम्पनी को लंबे समय तक सुचारू रूप से चलाने के लिए निवेश की आवश्यकता होती है । यह निवेश कम्पनी को तभी प्राप्त होगा जब कंपनी का balance sheet कम्पनी को अच्छी स्तिथि में रखेगा । साथ ही बैलेंस शीट कम्पनी के financial analysis में भी मदद करता है ।

    Limitations of Balance Sheet

    जहां Balance Sheet के कई फायदे हैं तो वहीं इसकी कुछ सीमाएं भी हैं । चलिए बैलेंस शीट की कुछ सीमाएं समझते हैं:

    1. अचल संपत्तियों को उनके बुक वैल्यू पर बैलेंस शीट में दिखाया जाता है । पारंपरिक बैलेंस शीट संपत्ति के मूल मूल्य को नहीं दर्शाती है ।

    2. बैलेंस शीट कुछ ऐसे कारकों के मूल्य को नहीं दर्शाती हैं जो संपत्ति की तरह हैं जैसे Skills और Loyalty आदि ।

    3. अधिकांश मौजूदा संपत्तियों का मूल्य कुछ अनुमानों पर निर्भर करता है, इसलिए यह व्यवसाय की सही वित्तीय स्थिति को प्रदर्शित नहीं कर सकता है ।

    FAQs

    1. बैलेंस शीट को हिंदी में क्या कहते हैं ?

    बैलेंस शीट को हिंदी में वित्तीय विवरण कहते हैं जिसके माध्यम से किसी संगठन या संस्था की वित्तीय स्तिथि का पता लगाया जाता है ।

    2. बैलेंस शीट कैसे तैयार की जाती है ?

    बैलेंस शीट तैयार करने के लिए सबसे पहले कम्पनी के कुल Assets, liabilities और Shareholder Equity को अलग अलग कैलकुलेट किया जाता है । इसके पश्चात Total Assets = Total Liabilities + Total Equity का फॉर्मूला लगा कर इसे टैली किया जाता है ।

    3. बैलेंस शीट कितने प्रकार के होते हैं ?

    बैलेंस शीट मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं:
    1. Comparative balance sheets
    2.Vertical balance sheets
    3.Horizontal balance sheets.

    4. बैलेंस शीट क्यों तैयार किया जाता है ?

    बैलेंस शीट तैयार करने का मुख्य उद्देश्य किसी कंपनी या संगठन की वित्तीय स्तिथि का पता लगाने के लिए किया जाता है । इसके साथ ही Balance Sheet की ही मदद से पता चलता है कि कंपनी की Net Worth क्या है और निवेशकों को कंपनी में निवेश करना चाहिए या नहीं ।

    5. बैलेंस शीट कब तैयार की जाती है ?

    बैलेंस शीट आमतौर पर महीने के अंत, तिमाही के अंत या साल के अंत में तैयार की जाता है और साथ ही बड़ी कंपनियां एक वित्तीय वर्ष में बैलेंस शीट तैयार करती हैं ।

    Conclusion

    Balance Sheet किसी भी कम्पनी की वित्तीय स्तिथि को बताने में काफी कारगर होता है और इसकी मदद से कम्पनी के Net Worth का भी पता लगाया जा सकता है । यह कंपनी का पूरा वित्तीय विवरण सामने रखता है इसलिए कंपनी के मालिक और निवेशकों को सही निर्णय लेने में मदद मिलती है । हालांकि यह Skills और Loyalty जैसी संपत्तियों का आंकलन नहीं करता यानि इसकी कुछ सीमाएं भी हैं ।

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    उम्मीद है कि आपको Balance Sheet in Hindi का पूरा कांसेप्ट समझ आ गया होगा । अगर इस विषय से संबंधित कोई भी प्रश्न आपके मन में है, जिसका उत्तर नहीं दिया गया है तो कॉमेंट के माध्यम से पूछें । अगर आर्टिकल सहायक लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें ताकि बैलेंस शीट क्या है प्रश्नकर्ताओं को पूरा कांसेप्ट समझ आ सके ।

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